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अमेरिका और भारत की EVM में क्या है फर्क, क्यों बिल्कुल सेफ हमारे वोट, समझिए पूरी बात1

अमेरिका और भारत की EVM में क्या है फर्क, क्यों बिल्कुल सेफ हमारे वोट, समझिए पूरी बात

अमेरिका और भारत की EVM

दुनिया के सबसे धनी शख्स एलन मस्क का कहना है कि ईवीएम को इंसान या एआई से हैक किया जा सकता है.उनके इस दावे पर पूर्व सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा है कि भारतीय ईवीएम सुरक्षित हैं. उन्हें उन्हें हैक करने को कोई रास्ता नहीं है.

नई दिल्ली:दुनिया के सबसे धनी शख्स एलन मस्क ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) पर सवाल खड़े किए हैं. उनका कहना है कि ईवीएम को खत्म कर देना चाहिए. उनकी दलील है कि इसे इंसान या एआई से हैक किया जा सकता है.मस्क के इस दावे पर पूर्व सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि भारतीय ईवीएम अलग तरीके से डिजाइन की गई हैं. इसलिए ये सुरक्षित हैं और किसी भी नेटवर्क या मीडिया से कनेक्टेड नहीं है.इसलिए उन्हें हैक करने को कोई रास्ता नहीं है.

अमेरिका और भारत की EVM में क्या है फर्क, क्यों बिल्कुल सेफ हमारे वोट, समझिए पूरी बात

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आइए जानते हैं कि भारतीय इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) और अमेरिकी इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन में क्या अंतर है और ये कैसे काम करते हैं.

अमेरिका में बैलेट पेपर से मतदान पर है जोर
अमेरिका में वोटिंग तकनीक पर नजर रखने वाली संस्था ने 2022 के मिड टर्म इलेक्शन के आंकड़ों के हवाले से बताया था कि रजिस्टर्ड मतदाताओं में से 70 फीसदी ने बैलेट पेपर से मतदान को प्राथमिकता दी.इसमें मतदाता अपने हाथ से ही बैलेट पेपर पर निशान लगाता है.इन बैलेट पेपर को मशीने के जरिए स्कैन किया जाता है.बहुत असाधारण स्थिति में ही उसे हाथ से गिना जाता है.

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वहीं 23 फीसदी मतदाताओं ने बैलेट मार्किंग डिवाइस (BMD) का इस्तेमाल किया. इसमें मतदाता अपना मत व्यक्त करने के लिए मशीन का इस्तेमाल करते हैं. इसका प्रिंटआउट निकलता है.इसे एक मशीन से स्कैन किया जाता है.

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अमेरिका की ईवीएम

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सात फीसदी मतदाताओं ने डायरेक्ट रिकॉर्डिंग इलेक्ट्रानिक (DRE) का इस्तेमाल किया. डीआरई अपनी मेमोरी में वोट को सुरक्षित रखता है.ये मशीनें वोट का पेपर रिकॉर्ड भी देती हैं.इस व्यवस्था का इस्तेमाल करने वालों की संख्या साल-दर-साल कम हो रही है.साल 2004 में 28.9 फीसदी मतदाताओं ने अपना वोट देने के लिए डायरेक्ट रिकॉर्डिंग इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन का इस्तेमाल किया था.

डीआरई की टचस्क्रीन वोटिंग मशीन से कोई पेपर बैलेट नहीं निकलता है और न ही इसका ऑडिट हो सकता है और न ही इसको वेरिफाई किया जा सकता है.इसमें मतदाता किसी गड़बड़ी का पता नहीं लगा सकता है,क्योंकि उसे सही मतदान दिखाई देगा, जबकि डिजिटल तरीके से गलत वोट रिकॉर्ड होता है.धांधली से बचने के लिए लगाए गए वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रायल (VVPAT) भी बैलेट पेपर जैसी सटीक जानकारी देने में नाकाम रहे.

अमेरिका की इलेक्ट्रॉनिक वोट मशीन की सबसे बड़ी खामी यह बताई जाती है कि इसमें इलेक्ट्रॉनिक वोट के बैकअप के लिए कोई फिजिकल रिकॉर्ड नहीं है.इसका मतलब यह है कि चुनाव अधिकारी इस बात पर भरोसा करने के लिए मजबूर हैं कि मशीनें हैक या खराब नहीं हो सकती जिससे वोट बदला या खो सकता है.

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अमेरिकी ईवीएम की विश्वसनीयता का संकट

अमेरिका में डायरेक्ट रिकॉर्डिंग इलेक्ट्रानिक को बनाने का काम अलग-अलग कंपनियां करती हैं. इसलिए उनकी विश्वसनीयता को लेकर संदेह जताया जाता रहा है.

हर राज्य तय करता है कि वे किस प्रणाली और मशीन का उपयोग करेंगे, और अक्सर ऐसा होता है कि मौजूदा बजट बहुत सीमित होते हैं.

अमेरिका की अधिकांश ईवीएम सीधे-सीधे इंटरनेट से नहीं जुड़ी होती हैं. लेकिन इससे यह तय नहीं होता कि वो हैक नहीं की जा सकती हैं.हर चुनाव से पहले ईवीएम की प्रोग्रामिंग की जाती है. इसमें उम्मीदवारों का ब्यौरा डाला जाता है. इसे इलेक्शन मैनेजमेंट सिस्टम (ईएमएस)के जरिए किया जाता है. ईएमएस आमतौर पर लैपटॉप या डेस्कटॉप के जरिए किया जाता है. इन लैपटॉप और डेस्कटॉप का इस्तेमाल दूसरे काम के लिए भी होता है. इस दौरान वो इंटरनेट से जुड़े हो सकते हैं. इस दौरान हैकर उनका इस्तेमाल कर सकते हैं. उसमें कोई वायरस डाल सकते हैं.

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कैसी होती है भारत की ईवीएम

ईवीएम या इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन बैटरी से चलने वाली एक ऐसी मशीन,जो मतदान के दौरान डाले गए वोटों को दर्ज करती है और वोटों की गिनती भी करती है.ये मशीन तीन हिस्सों से बनी होती है. एक होती है कंट्रोल यूनिट (सीयू), दूसरी बैलेटिंग यूनिट (बीयू). ये दोनों मशीनें पांच मीटर लंबी एक तार से जुड़ी होती हैं. तीसरा हिस्सा होता है वीवीपैट.
ईवीएम की कंट्रोलिंग यूनिट.

बैलट यूनिट पर मतदाता बटन दबाकर वोट देता है और दूसरी यूनिट उस वोट को स्टोर किया जाता है.एक बैलेट यूनिट में 16 उम्मीदवारों के नाम दर्ज किए जा सकते हैं.अगर उम्मीदवार अधिक हों तो अतिरिक्त बैलेटिंग यूनिट्स को कंट्रोल यूनिट से जोड़ा जा सकता है.चुनाव आयोग के अनुसार,ऐसी 24 बैलेटिंग यूनिट एकसाथ जोड़ी जा सकती हैं,जिससे नोटा समेत अधिकतम 384 उम्मीदवारों के लिए मतदान करवाया जा सकता है. कंट्रोल यूनिट बूथ के मतदान अधिकारी के पास होती है. वहीं बैलेट यूनिट तीन तरफ से घेरे में रखी रहती है.वहां लोग वोट डालते हैं.

कहां दर्ज होते हैं उम्मीदवारों के नाम

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बैलट यूनिट पर पार्टियों के चिन्ह और उम्मीदवारों के नाम दिए होते हैं.उस पर उम्मीदवारों की फोटो भी होती है. एक नीला बटन हर उम्मीदवार के सामने लगा होता है. इसी बटन को दबाकर मतदाता मतदान करता है.
ईवीएम से मतों की गिनती करते कर्मचारी.

मतदान केंद्र पर आखिरी वोट पड़ जाता है तब पोलिंग अफसर कंट्रोल यूनिट पर लगे क्लोज बटन को दबा देता है.इसके बाद ईवीएम पर कोई वोट नहीं डाला जा सकता.रिजल्ट के लिए कंट्रोल यूनिट पर रिजल्ट बटन दबाना होता है.इससे किस उम्मीदवार को कितने वोट मिले पता चल जाता है.

वोटर वेरिफायबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपैट) ईवीएम से जुड़ा एक ऐसा सिस्टम है, जिससे वोटर यह देख सकते हैं कि उनका वोट सही उम्मीदवार को पड़ा है या नहीं.

ईवीएम की प्रोग्रामिंग

ईवीएम के अंदर एक माइक्रोप्रोसेसर होता है. इसे सिर्फ एक ही बार प्रोग्राम क

िया जा सकता है. यानी इसके प्रोग्राम में जो एक बार लिख दिया गया, उसमें बदलाव नहीं हो सकता. इसमें कोई दूसरा सॉफ्टवेयर नहीं डाला जा सकता.ईवीएम बैटरी से चलती है, बिजली से नहीं.

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मतदान केंद्र जाने से पहले चुनाव कर्मचारी.

भारत में ईवीएम को मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस की भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड (बंगलुरु) और इलेक्ट्रॉनिक कारपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड हैदराबाद बनाते हैं.

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ईवीएम के पुराने मॉडल में 3840 वोट डाले जा सकते थे. नए मॉडल में केवल 2000 वोट ही पड़ते हैं. एक ईवीएम यूनिट को तैयार करने में करीब 8700 रुपये का खर्च आता है.

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